वरिष्ठ पत्रकार तपन चक्रवर्ती का सटीक व स्वतंत्र विश्लेषण
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क्या बीजेपी को आत्म अवलोकन करने की आवश्यकता नहीं है कि इतना ख़राब परफॉर्मेंस क्यों है ?
समय की मांग है कि देखें कि हमसे क्या गलतियां हुई कि हम 303 से 240 पर आ गए यानी 63 सीट कम हो गई ।
आत्मावलोकन करना होगा कि राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश मैं सीट काम क्यों हुई ।
इसकी शुरुआत राजस्थान से करते हैं राजस्थान में बड़े स्थापित बीजेपी के नेताओं ने मन से काम नहीं किया, क्यों? क्योंकि आपने वरिष्ठों को दरकिनार करते हुए प्रथम बार जीत कर आए विधायक को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया क्या यह उचित था? यह उन वरिष्ठ भाजपा नेताओं का सरासर अपमान था जिन्होंने पार्टी को फलने फूलने में अपना खून पसीना दिया था । क्या प्रल्हाद जोशी, सी पी जोशी, वसुंधरा राजे, अर्जुन राम मेघवाल जैसे कई और दिग्गज नेताओ को नीचा नहीं दिखाया गया ? इस लोकसभा चुनाव में इन नेताओं ने अपने समर्थकों को शांत कर दिया था और चुनाव प्रचार में पूर्ण सहयोग नहीं दिया । किसी भी चुनाव में चुनाव जमीनी कार्यकर्ता ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है और जब उनके नेतृत्व ने उन्हें तटस्थ रहने का निर्देश दिया तो परिणाम प्रतिकूल ही होंगे ।
अब हरियाण पर आते है, हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के निरंकुश शासन काल एवं हठधर्मिता ने बीजेपी को नापसंद करना शरू कर दिया । यदि मनोहर लाल खट्टर को कुछ दिन और पहले मुख्यमंत्री पद से अलग कर देते तो शायद स्थिति कुछ और होती ।
महाराष्ट्र की बात करें तो शिवसेना को तोड़ना, अजीत पवार जैसे लोगों को अपने साथ लेना जिन्हें आप दो दिन पहले तक भ्रष्टाचारी कह रहे थे और दो दिन बाद वह धवल चरित्र के हो गए तथा उनके केस भी खत्म कर दिए यह जनता को पसंद नहीं आया । आपने सरकार बनाने के लिए बीजेपी के वरिष्ठ उज्जवल छवि वाले देवेंद्र फडणवीस को संख्या बल अधिक होने पर भी शिंदे के अधीन उपमुख्यमंत्री के रूप में काम करने को मजबूर किया जिसका प्रभाव आपको देखने को मिला ।
अगर आप महाराष्ट्र में सरकार न बनाते और महा विकास आघाडी की सरकार अपने अंतर विरोध और अंतर कलह से गिरती और तब मध्यवर्ती चुनाव होते तो शायद आप बहुमत में होते और आपको इस चुनाव में इन छोटे दलों से महाराष्ट्र में गठबंधन न करना पड़ता । यह छोटे दल ना तो स्वयं जीते और ना ही आपको अपना वोट दिला पाए । महाराष्ट की सीट कम होना इस बात का घोतक है कि इन दोनों पार्टियों की जिन्हें अपने अपने साथ जोड़ा है इनकी कोई अहमियत नहीं है जिस कारण आपको महाराष्ट्र में नुकसान उठाना पड़ा ।
जब आप महाराष्ट्र में उपमुख्यमंत्री पद से संतुष्ट थे तो आपको उद्धव को ही मुख्यमंत्री बनना था और युति को चलने देना था ।
आपको लगा कि शिवसेना उद्धव गुट का कांग्रेस और एनसीपी से समझौता नुकसानदेह होगा गलत साबित हुआ । महाराष्ट्र के लोगों ने आज भी उद्धव ठाकरे को ही असली शिवसेना माना ।
उत्तर प्रदेश में बाबा योगी ने 36 लोगो को जिन्हें टिकट दिया गया अपनी ओर से असमहित जताई थी लेकिन योगी की बात को दरकिनार कर उन्हें टिकट दिया । फैजाबाद में योगी ने लल्लू सिंह का टिकट का विरोध किया था वह जानते थे कि वह चुनाव नहीं जीत सकते लेकिन मनमर्जी और निरंकुशता के कारण आपने सोचा कि कहीं बाबा पावरफुल ना हो जाए अपनी मनमर्जी से उत्तर प्रदेश में अपने ही मन की चलाई जिसका परिणाम यह हुआ कि आप 2019 के समय की सीटों से आधी सीटों पर आ गए ।
हिंदुओं को दोष देने से पहले हमे अपने गिरेबान में झांक लेना चाहिए कि हमने क्या गलती की है और हमें किस बात का यह प्रतिफल मिला है ।
जब आपने स्वयं नारा दे दिया था कि अबकी बार 400 पार बीजेपी 370 पार तो आम जन मानस को लगा कि हम वोट दें या ना दें 400 सीट तो आ ही रही है इसलिए वह मतदान करने नहीं निकला । 2004 में जिस तरह प्रमोद महाजन ने इंडिया साइनिंग कैंपेन चलाया था और जनता ने उसे नकार दिया था, इसी तरह इस बार भी जनता ने आपके ओवर कॉन्फिडेंस को नकार दिया ।
चुनाव व्हाट्सएप पर पोस्ट, नारे और सोशल मीडिया पर कैंपेन चला कर नहीं जीते जाते । आपको जमीनी स्तर पर काम करना पड़ता है । जब आप के लोग पब्लिकली यह कहने लगें की 400 पार होने दो संविधान बदल देंगे तो जनता डर गई की कही हिटलर शाही ना आ जाए इसलिए वह वोट डालने नहीं निकला । आप के बड़बोले नेताओं के बयान ने विपक्ष को आरक्षण का मुद्दा उठाने का मौका दिया और यूपी का सारा अनुसूचित जाति, जनजाति का वोट दूसरे चरण के बाद इंडी गठबंधन को चला गया । आप यह सिद्ध करने में असफल रहे कि यह गलत प्रचार है । जिसका परिणाम महाराष्ट की अमरावती सीट पर भी देखने को मिला जहाँ से फायरब्रांड नेत्री नवनीत राणा कांग्रेस से 20000 वोट से हार गयी ।
आप हिन्दुओ को गद्दार या जयचंद हिंदू नहीं कह सकते क्योंकि उन्हें भी अपना व्यक्तिगत हित देखना होता है । आपकी बातों से उन्हें लगा कि देश में आरक्षण खत्म हो जाएगा और वह घबराकर दूसरे पाले में चले गए । स्वयं का दोष न देखकर आप हिंदुओं को गाली दो तो शायद यह उचित न होगा और यदि इस तरह के बयान बाजी सोशल मीडिया पर चलते रहे तो विभिन्न राज्यों में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव में आपको पुनः यह दिन देखने पड़ेंगे ।
पार्टी के अध्यक्ष की यह गर्वोक्ति कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आवश्यकता अटल जी को थी हमें नहीं है । आपका यह बडबोलापन आपके विरुद्ध गया। स्वयंसेवक जमीनी स्तर पर कार्य करके आपको जीतने में मदद करते थे, लेकिन जब आपके राष्ट्रीय अध्य्क्ष ने इस तरह क़ी बयान बाजी की तो संघ ने स्वयं अपने आपको चुनाव प्रक्रिया से अलग रखना बेहतर समझ और स्यवं सेवक तटस्थ हो गए । आपके इस बड़बोलेपन से माननीय मोहन भागवत जी को यह कहने पर मजबूर होना पड़ा की स्वयंसेवक अपनी मर्जी से अपना वोट डाल सकता है । क्या यह आपके अहंकारी होने का प्रमाण नहीं है ।
लिख तो बहुत कुछ सकता हूँ, पर इतना ही काफी है । मेरा अनुरोध है क़ि आत्मावलोकन करें, और हिन्दुओ को गद्दार या जयचंद कहना बंद करें नहीं तो भविष्य में और बुरी स्थिति का सामना करना पड़ेगा ।
में आपको एक बात और बताऊ की इस बार के उत्तरप्रदेश परिणाम का जब में विश्लेषण कर रहा था तो पाया की 165 विधानसभा सीटों में INDI गठबंधन केवल 1000 से कम वोटो से पीछे है यदि अगले चुनाव तक इन विधानसभा में 2000 नए मुस्लिम वोटर जुड़ जायेंगे या अकबरुद्दीन की पार्टी INDI को समर्थन कर दें तो अगले विधानसभा चुनाव में SP+Congress कुल सीट 403 में से 350 सीट तक पा सकती है ।