विश्व स्तर पर आयोजित होने वाला खेलों का महामेला , महाकुंभ, आज पेरिस में शानदार तरीके से आयोजित होकर समापन पर है।
भाला फेंक से रजत, शूटिंग से तीन,हाकी से एक ,और कुश्ती से एक कांस्य कुल छः पदकों को झोली में डालकर , भारतीय टीम वापस आ रही है। जाहिर है उनका भव्य स्वागत होना चाहिए, उनकी मेहनत और इस उपलब्धि के लिए। पदक विजेताओं को बधाई, और पराजित आशार्थियों के प्रति सहानुभूति तथा आगामी सफता की शुभकामनाएं।
विश्व में जनसंख्या की दृष्टि से सबसे ऊपर भारत है, करीब डेढ़ सौ सदस्यों का दल, खेल में शिरकत के लिए पेरिस गया था। कई खेलों में भाग लेने का अवसर मिला, कई खेलों के लिए पात्रता ही नहीं रही, उसे छोड़ दिया जाए। इस महा मेला में हमारी उपलब्धि, हमारी हैसियत क्या है?और विश्व पटल,या आकाश में हम , क्या सूरज, चांद,सितारे बन पाये,या जुगनू की तरह टिमटिमाते रह गये।
इसके लिए पदक तालिका की तरफ नजर करना होगा। भारत का स्थान तालिका में 82 में से 71वें नंबर पर है। एशियन देश थाईलैंड, इंडोनेशिया भी ऊपर हैं, चीन जापान की बात तो छोड़ दीजिए। खेल में श्रेष्ठता प्रमाणित करने के लिए स्वर्ण का तगमा हासिल करना आवश्यक है, अफसोस हम साबित करने से वंचित रह गए। आज तक कुल जमा जितने स्वर्ण पदक हमारे पास हैं,उतने तो कई बार एक खिलाड़ी एक सीजन में हासिल कर लेता है।
जब भी कोई भारतीय खिलाड़ी किसी खेल में जोर आजमाईश करता है, हर भारतवासी भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है, हर कोई चाहता है कि उसकी जीत ही हो, टीवी में मैच देखते देखते हमारे हाथ पांव हिलने डुलने लगते हैं, हमारा खिलाड़ी पूरे दमखम से जूझता है, मगर विपक्षी या प्रतिद्वंद्वी अक्सर बल और कौशल में भारी पड़ता है, खेल है अपना खिलाड़ी अंत में पराजित हो जाता है। कभी कभी हमारा खिलाड़ी हारे तब तो कोई बात है मगर अक्सर ही जब हमारा खिलाड़ी हारे तो जरूर चिंता और शोचनीय बात है, और यही दशा हमारी है। बात निराशा में डूबने की नहीं है बल्कि उबरने और सीखने की है,चूक कहां हो रही है, उसे दूर कर, शिखर तक पहुंचने की है। कई सालों से लकीर पीटते आ रहे हैं,अब समय आ गया है ठोस रणनीति बनाने का।भारत सरकार खेल विभाग, चीन, अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया आदि देशों की खेल नीतियों का अध्ययन करे। अच्छी नीति लागू करें, बचपन से प्रतिमाओं की खोज करे, किसी भी देश से योग्य प्रशिक्षण की व्यवस्था हो, खेल सुविधाएं मुहैय्या कराकर लंबे रेस के घोड़े तैयार किए जायें। खिलाड़ियों को, रोजगार सुरक्षा मिले। दुनिया में भारत सबसे बड़े मानव संसाधन से युक्त है, इसमें गुणवत्ता बढ़ाने की जरूरत है।
भाला फेंक, कुश्ती, भारोत्तोलन, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, हाकी, नौका रेस आदि खेलों में सुधार से बेहतर प्रदर्शन में उम्मीद की किरण नजर आती है। खेल में जब तक पेशेवर रूख न अपनाया जायेगा, निराशा हाथ आती रहेगी।
ओलंपिक इतिहास में हमारी प्रगति तो है मगर गति बहुत धीमी है, इसे स्वीकारते हुए अच्छी रणनीति के साथ आगे बढ़ें तो जरूर सफलता मिलेगी। यदि यही नीति और गति रही तो आगामी लास एंजिल्स में आने वाले परिणामों को झेलने के लिए अभी से खेल प्रेमी दिल को मजबूत कर लें , अच्छा रहेगा।
बात खेल भर की नहीं है वरन् देश के समग्र विकास और विश्व में हमारी अस्मिता की भी है। यह तभी संभव है कि इतिहास से सबक लेकर , विश्वगुरु होने के भ्रम में न पड़कर,मानव संसाधन की गुणवत्ता बढ़ाते हुए, राष्ट्र को तरक्की की ऊंचाई तक पहुंचाया जाए।
हमारा देश भी विकसित भारत बने, ताकि हम भी मातृ भूमि के लिए गर्व से कह सकें — “गर फ़िरदौस बर रुए जमींअस्त;, हमीं अस्तो,हमीं अस्त,”
जय भारत !
विजय बाजपेई ,बालको
की कलम से…